केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय से 12वीं करने वाले स्टूडेंट्स को ग्रेजुएशन के लिए किसी दूसरे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल रहा

भोपाल
संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लगातार प्रयासों के बीच ये खबर हैरान करने वाली है। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय से उत्तर मध्यमा/प्राक्शास्त्री (कक्षा 11वीं और 12वीं) करने वाले स्टूडेंट्स न तो ग्रेजुएशन के लिए किसी दूसरे कॉलेज में एडमिशन ले पा रहे है कक्षा 12वीं तक की ये कक्षाएं किसी बोर्ड से संबद्ध नहीं हैं। हालांकि जो छात्र प्राक्शास्त्री के बाद इसी विश्वविद्यालय से शास्त्री यानी ग्रेजुएशन करता है या इससे आगे की पढ़ाई करता है तो उसे सब जगह मान्य किया जा रहा है। भोपाल कैंपस में प्राक्शास्त्री कोर्स में हर साल 60 छात्रों को प्रवेश मिलता है अब अन्य संस्थानों द्वारा इसे मान्यता न देने से ये चिंतित हैं।
केंद्र सरकार सभी को सर्कुलर जारी कर चुकी, फिर भी मान्यता नहीं दे रहे बोर्ड
भोपाल के आर्यावर्त शर्मा ने 2024 में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, भोपाल कैंपस से कक्षा 12वीं (प्राक्शास्त्री) की पढ़ाई की, लेकिन इसे मान्यता न मिलने के कारण किसी कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल रहा। वे सीयूईटी और अग्निवीर भर्ती में आवेदन नहीं कर पाए, क्योंकि ऑनलाइन फॉर्म में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान और केंद्रीय संस्कृत विवि का नाम उपलब्ध नहीं। अब उन्हें प्राइवेट 12वीं की पढ़ाई करनी पड़ रही है। समाधान के लिए कैंपस में कई बार संपर्क किया, लेकिन कोई सहायता नहीं मिली।
भारत सरकार ने 1970 में संस्कृत शिक्षा के विकास के लिए राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान की स्थापना की थी। मई 2002 में इसे बहुपरिसरीय मानित विश्वविद्यालय घोषित किया गया, जिसका भोपाल कैंपस साल 2002-03 से संचालित है।
2020 में इसे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में शामिल कर दिया गया। 2013 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों और बोर्ड को सर्कुलर जारी कर स्पष्ट किया था कि उत्तरमध्यमा/प्राक्शास्त्री 11वीं और 12वीं के समकक्ष है, फिर भी कई संस्थान इसे मान्यता नहीं दे रहे हैं।
मामला उच्च स्तर पर संज्ञान में
यह प्रकरण उच्च स्तर पर संज्ञान में लाया गया है। प्राक्शास्त्री को केंद्रीय मंत्रालय द्वारा हायर सेकंडरी के समतुल्य माना गया है। इसे मान्य किया जाना चाहिए। -प्रो. रमाकान्त पांडेय, निदेशक, भोपाल कैंपस, केंद्रीय संस्कृत विवि
जल्द समाधान किया जाएगा
विषय संज्ञान में है। पूर्व में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान थे। तब समस्या नहीं थी। मंत्रालय स्तर पर चर्चा की जा रही है। जल्द समाधान होगा।-प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, कुलपति, केंद्रीय संस्कृत विवि, दिल्ली