महाकुंभ 2025: आस्था के महासागर में एक चिकित्सक की अनुभूति … डाॅ.आशीष दीक्षित एम्स भोपाल
धन्य हो हमारी भारतभूमि, जय हो महाकुंभ जहां के पग-पग पर धैर्य, शांति और सनातन की सदभावना का महादर्शन करने का सौभाग्य हम सभी को मिला।
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मेरी चिकित्सा स्नातक का अध्ययन प्रयागराज से हुआ और मैने अपने जीवन के लगभग आठ वर्ष संगम नगरी में व्यतीत किए। इन वर्षों में मैने वहां अर्धकुंभ भी देखा, लेकिन इस महाकुंभ 2025 जैसा उत्साह और आस्था का सैलाब पहले कभी भी नहीं देखा था। इसी सैलाब में मैं भी बह गया और अपने आपको प्रयागराज जाने से रोक न सका। मैं वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हूं। ट्रेन से जाने के कई असफल विकल्पों के पश्चात मैने सड़क मार्ग से जाना चुना। भोपाल से रात में मेरी यात्रा हर हर गंगे के उद्घोष के साथ शुरू हुई। मेरे साथ अन्य कई श्रद्धालु जिनमें वृद्ध, महिलाएं और नवयुवक भी शामिल थे। सभी लोग अत्यंत प्रसन्नता के साथ कुंभ के बारे में श्रद्धालु बातें कर रहे थे, “मैं तो पहले नहीं जा रही थी क्योंकि भीड़ बहुत है, कैसे जाऊंगी, बहुत चलना पड़ रहा है। लेकिन फिर भी मन नहीं माना और सोचा कि जरूर जाऊंगी। तीर्थ में इतना भी आहूत नहीं किया तो क्या तीर्थ किया।” एक यात्री ने दूसरे से कहा। एक अन्य ने कहा कि मैने तो नौकरी से छुट्टी ली कि अब तो मुझे जाना ही है। तभी एक श्रद्धालु ने ड्राइवर से पूछा, “क्या भैया! सुना है प्रयागराज से पहले बहुत जाम लगा हुआ है, आपको कुछ जानकारी है।” ड्राइवर बोला, “जाम सुना तो है लेकिन जब पहुंचना है तो पहुंचना है। अब सड़कों पर चलना है तो जाम भी उसका एक हिस्सा है और फिर जब इतने लोग देश दुनिया से सनातन के इस बड़े मेले में जा रहे हैं तो इतना तो चलेगा ही।” मैं घर से निकलने से पहले बहुत आशंकित था क्योंकि मैने भी जाम के बारे में टीवी और सोशल मीडिया में देखा था। लेकिन अब वो सारी आशंकाएं लोगों की आशावादी सोच के सामने समाप्त हो रही थी। रात में एक होटल में थोड़ी देर रुकने के पश्चात हमारी बस चल पड़ी। सभी अब सोने की तैयारी कर रहे थे, मैं भी सो गया। सुबह मेरी आंख खुली तो 3 – 4 बज रहे थे, और बस थोड़े जाम में फंसी थी। मुझे डर लगा कि यही तो वो जाम नहीं है लेकिन थोड़ी देर में ही बस आगे निकल गई। मुझे सुकून मिला कि चलो बच गए लेकिन कुछ देर बाद ही कटनी में अच्छा खास जाम था और हम फंस गए थे। लोगों ने खाने पीने का सामान निकाला और सभी से व्यक्तिगत पूछा कि आपके पास खाने को नहीं हो तो आप हमसे ले लीजिए। अनजानों की बीच इतनी मैत्रीयता देख कर बहुत अच्छा लगा। अब हमारी बस आगे निकल चुकी थी और धीरे-धीरे चलकर शाम तक रीवा पहुंच गई थी। रीवा प्रयागराज मार्ग पर ही कुछ लंबा ट्रैफिक जाम था। अब सभी लोगों का भोजन आदि समाप्त हो गया था। गाड़ियां फंसी हुई थी। सब नीचे उतर गए, मैं भी बस से नीचे उतर गया। मैने गाड़ियों के नंबर से पहचाना कि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश,कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु और स्वाभाविक मध्य प्रदेश के सैकड़ों गाड़ियां खड़ी हुई थीं। मुझे इतना आश्चर्य हुआ कि कैसे लोग इतनी दूर – दूर से गाड़ी चलाकर आ रहे हैं। लेकिन यही आस्था है और इसके आगे सभी चीजें नगण्य हैं। इसके बाद का जो अनुभव मेरा था वो मुझे जीवन पर्यंत याद रहेगा। लोगों के पास कुछ खाने को नहीं था और जाम मनगवां (रीवा) में फंसा हुआ था। ग्रामीण वासियों ने अपने घरों में जो भी सामग्री थी उससे वह भोजन बना रहे थे और 20/25/30 रुपए में लोगों को खिला रहे थे। कोई दाल चावल बनाकर खिला रहा था तो कोई चाय बनाकर पिला रहा था। एक बच्ची अपने हाथों में 8-10 मोटी रोटियां लाकर बाहर शायद अपने पिताजी को दी और वह सभी श्रद्धालु को देने लगे। आश्चर्यजनक रूप से कोई भी ग्रामीण किसी की मजबूरी का कोई फायदा नहीं उठा रहा था। बड़ी- बड़ी गाड़ियों से चलने वाले और अभिजात्य वर्ग के लोग जो शायद उन गरीब झोपड़ियों के पास से भी न गुजरते या हाइजीन अनहाइजीन की बातें करते वो भी उनके आंगन में बैठकर खुद और अपने बच्चों को भोजन करा रहे थे। गरीब ग्रामीणों ने भी अपने घरों के दरवाजे खोल दिए, चारपाई बिछा दी, लोगों ने बच्चों को उसी पर सुला दिया। जाम में फंसे हुए कुछ ज्यादा समय हो गया तो मेरे सहयात्री अधीर और आशंकित हो रहे थे। मैं भी चिंतित हो रहा था और सोच रहा था कि मैने कोई गलती तो नहीं कर दी, मुझे नहीं आना चाहिए था। तभी एक ने कहा कि भगवान बस पहुंचा दो कुछ नहीं तो प्रयागराज की मिट्टी ही माथे पर लगा लूंगा, वही बहुत सौभाग्य होगा। तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा कि धैर्य रखो हम पहुंचेंगे भी और स्नान भी करेंगे। मुझे उनकी आस्था और धैर्य देखकर संबल मिला। अब रात हो चली थी,मेरी आंख लग गई। सुबह सुबह मेरी आंख खुली तो बाहर देखा कि दुकानों के बोर्ड पर घूरपुर, प्रयागराज लिखा था और बस तेजी से निकल रही थी। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। कुछ समय में सभी लोग उठकर हर हर गंगे और हर हर महादेव का उद्घोष कर रहे थे। मेरे एक परिवारीजन का घर नैनी में है। मैं वहां जाकर ठहरा और थोड़ी देर में ही अरेल घाट चला गया। हजारों, लाखों की भीड़, किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं, कोई जाति भेद नहीं, सभी उसी पवित्र जल में सनातन के एकता सूत्र में बंधे हुए थे। पल पल पर प्रशासनिक मदद के लिए तत्पर लोग खड़े थे। अत्यंत बुजुर्ग लोग, चलने में असमर्थ, कुछ वॉकर के सहारे, कुछ गोदी में, बच्चे कंधे पर, एक दूसरे को रस्सी से, दुपट्टे से बांधे हुए लोग, त्रिवेणी में डुबकी लगा रहे थे और फोटो, वीडियो बना रहे थे। सब उस पल को हमेशा के लिए स्मृति में रखना चाहते थे। आस्था का ऐसा संगम देखकर ही मेरा मन बहुत प्रफुल्लित था और मुझे लगा कि मेरा तो इस दर्शन मात्र से ही स्नान हो गया। फिर मैने भी परिवार सहित डुबकी लगाई, भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और स्नान संपूर्ण किया।
धन्य हो हमारी भारतभूमि, जय हो महाकुंभ जहां के पग-पग पर धैर्य, शांति और सनातन की सदभावना का महादर्शन करने का सौभाग्य हम सभी को मिला।