वर्तमान में बढ़ रहे सामाजिक सांस्कृतिक प्रदूषण को रिफाइंड करने के लिए पुस्तकों की संजीवनी ज़रूरी-डॉ.देवेंद्र दीपक
पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी मित्र और पथ प्रदर्शक -गिरीश पंकज
भोपाल [जनकल्याण मेल] समाज में बढ़ रहे सामाजिक सांस्कृतिक प्रदूषण को रिफ़ाइंड करने के लिए पुस्तकें एक संजीवनी की तरह हैं , समाज में पुस्तकों की प्रतिष्ठा और पुस्तकों का विस्तार ज़रूरी है ।यात्रा में पुस्तक यानी पुस्तक में यात्रा यानी एक साथ दो यात्रायें | यह उद्गार हैं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ देवेंद्र दीपक के जो लघुकथा शोध केंद्र समिति भोपाल द्वारा आयोजित पुस्तक पखवाड़े के प्रथम सत्र का उद्घाटन करते हुए बोल रहे थे |
इस पुस्तक पखवाड़े में वरिष्ठ साहित्यकार राकेश शर्मा की कृति ‘स्मृतिरूपेन ‘ संस्मरण एवं दयाराम की कृति ‘ब्रह्मपुत्र से सांगपो’ एक सफ़रनामा पर चर्चा आयोजित की गई | स्मृतिरूपेन कृति पर चर्चा करते हुए डॉ अनिल कुमार पाण्डेय ने कहा कि-‘ स्मृतियाँ जीवन का अहम हिस्सा हैं , हमें अतीत से बहुत कुछ सीखने समझने को मिलता है ,इस संस्मरण कृति से में अपने समय के महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों को समझने का अवसर मिलता है | इसी तरह समीक्षक डॉ विश्वजीत मिश्र ने ‘ब्रह्मपुत्र से सांगपो’ पर चर्चा करते हुए कहा कि ‘ यह पूर्वोत्तर की कठिन और दुर्गम यात्रा का वृतांत है | यह वहाँ की संस्कृति को निकट से जानने का एक पारिवारिक प्रयास है | ‘
पुस्तक परिचर्चा के इस आयोजन में लेखक राकेश शर्मा और दयाराम वर्मा ने भी अपनी पुस्तकों की रचना प्रक्रिया और अनुभवों पर विस्तार से प्रकाश डाला | कार्यक्रम का सफल संचालन घनश्याम मैथिल अमृत ने किया | कार्यक्रम के अंत में गोकुल सोनी ने आभार प्रकट करते हुए कहा कि साहित्य चर्चा से जो नवनीत निकलता है वह विचारों में सामाजिक समरसता हेतु स्नेहक का कार्य करता है |
इस आयोजन में देश प्रदेश तथा विदेशों से पुस्तक प्रेमी पाठक उपस्थित थे |
गोकुल सोनी, उपाध्यक्ष
लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल